All travel is now merely a means of moving a camera from place to place, all travellers are ruled by the all-powerful lens. Visitors old-fashioned enough to wish only to stand and look with their anachronistic eyes are shoved aside by the photographers, who take it for granted that while they do their ritual focusing, nothing else may move or cross their vision. Those peculiar souls without a camera must step aside for those more properly occupied, must wait while the rituals take place, and must bide their time while whole coaches stop and unleash upon the landscape the Instamatic God. And the populations of whole countries seeing themselves cannibalised, swallowed up, vacuumed into the black-ringed staring eye, wrench what they can from the cannibals. You want picture my house, my camel? You pay.
None of this would matter, perhaps, if anything worthwhile was being accomplished. If all the constant busyness and clicking produced, at its end, what had not existed before, images of beauty captured or truth told. But, sadly, this isn't so. The camera is simply graffiti made respectable.
The camera is the means by which we stamp ourselves on everything we see, under cover of recording the Wonders of the World already wonderfully
recorded by professionals and on sale at every corner bookshop and newsagent. But what use to show Aunt Maud, back home, postcards of the Tuscan landscape, since we are not in the picture to prove that we were there?
No stretch of rocks has verity unless I am within it. No monument exists
but for my wife, leaning against it. No temple is of interest without my face beside it, grinning. With my camera I appropriate everything beautiful, possess it, shrink it, domesticate it, and reproduce it on my blank sitting-room wall to prove to a selected audience of friends and family the one absolutely vital fact about these beauties: I saw them, I was there, I photographed them, and, ergo, they are.
from "Amateur Photography: the World as it isn't and our Fred" by Jill Tweedie in the Guardian | सभी यात्राएँ अब बस एक जगह से दूसरी जगह पर कैमरा घुमाना भर है, सभी यात्री सर्व-शक्तिमान लेंस से शासित होते हैं। जो आगंतुक इतने पुराने फ़ैशन के हैं कि बस खड़े होकर अपनी अव्यवस्थित आँखों से देखना भर चाहते हैं उन्हें फ़ोटोग्राफ़र किनारे कर देते हैं, जो इस बात को निश्चित मान लेते हैं कि जब तक वे अपने फ़ोकस करने का समारोह करते हैं, तब तक किसी और को हिलना या उनकी दृष्टि के सामने से गुजरना नहीं चाहिए। कैमरा-रहित उन आत्माओं को उन अधिक उचित ढंग से व्यस्त आत्माओं के सामने से हट जाना चाहिए, तब तक इंतज़ार करना चाहिए जब तक समारोह पूरा नहीं हो जाता, और अपने समय को स्थिर कर देना चाहिए जब कि समूचा प्रशिक्षण रुक नहीं जाता है और परिदृश्य में इंस्टेमैटिक ईश्वर का अवतार नहीं हो जाता। और सभी देशों के लोगों को खुद को काले घेरे की घूरती आँख में खाता, निगलता, और खींच लेता देखते हुए, खुद को बचाकर भाग लेना चाहिए जो वे नरभक्षियों से कर सकते हैं। आपको मेरे घर, मेरे ऊँट की तस्वीर चाहिए? आप भुगतान करें।
शायद इनमें से किसी बात से कोई फ़र्क़ न पड़े, यदि कोई उपयोगी काम हो रहा हो। यदि सभी सतत व्यस्तता और क्लिक करना, अंततः, वह पेश करे, जो पहले मौजूद नहीं था, सौंदर्य की उकेरी कई छवियाँ या कहा गया सच। लेकिन, दुख की बात है कि ऐसा नहीं है। कैमरा तो बस चित्रों को सम्मानित करना है।
दुनिया के उन अजूबों को रिकॉर्ड करने के आच्छादन के नीचे जिन्हें पेशेवरों ने पहले ही अद्भुत ढंग से रिकार्ड कर लिया है और जो हर जगह किताबों की दुकानों और अख़बारों के एजेंट के पास बिक्री के लिए उपलब्ध हैं, कैमरा वह माध्यम है जिससे हम उस सब पर अपनी मुहर लगाते हैं जो हम देखते हैं। क्योंकि वापस लौटकर आंट मौड, या टस्कन भू-दृश्य के पोस्टकार्ड दिखाने का क्या फ़ायदा, क्योंकि हम यह साबित करने के लिए तस्वीर में नहीं हैं कि हम वहाँ थे?
चट्टानों के किसी भी फैलाव में विविधता नहीं है जब तक कि मैं उसमें नहीं हूँ। किसी स्मारक का वजूद ही नहीं है जब तक कि मेरी पत्नी उसके साथ टेक लगाकर न खड़ी हो। किसी मंदिर में कोई रोचक बात नहीं है जब तक कि मेरा दाँत दिखाता चेहरा उसके साथ न हो। अपने कैमरे के साथ जो कुछ भी सुंदर है मैं उसे अपनी बैठक की खाली दीवार पर अपने दोस्तों और परिवार के चयनित दर्शक-वर्ग को इस सौंदर्य के बारे में एक पूर्ण महत्वपूर्ण तथ्य साबित करने के लिए उपयुक्त बनाता हूँ, अपने क़ब्ज़े में रखता हूँ, सिकोड़ता हूँ, प्रदर्शित करता हूँ, और पुनः पेश करता हूँ: मैंने उन्हें देखा, मैं वहाँ था, मैंने उनकी फ़ोटो ली, और इसलिए वे हैं।
"एमैच्योर फ़ोटोग्राफ़ी: द वर्ल्ड एज़ इट इज़ंट एंड ओवर फ़्रेड" से, लेखक जिल ट्वीडी, द गार्ज़ियन में। |